Add To collaction

लोककथा संग्रह

लोककथ़ाएँ


अकनंदुन कश्मीरी लोक-कथा

प्राचीन काल में कश्मीर के एक भाग पर जिसका नाम नाम संघिपत नगर था एक राजा राज करता था। यह जगह अब जलमग्न हो गई है और उसकी जगह अब झील वुलर है। राजा के कोई पुत्र न था। अत: राजा और उसकी रानी, जिसका नाम रत्नमाला था, पुत्र पाने की इच्छा से, साधु संतों की बड़ी सेवा किया करते। एक दिन उनके महल में एक जोगी आया। उन्होंने इस जोगी की बड़ी आव-भगत की और अपनी मनोकामना उसके सामने प्रकट की।
जोगी ने उत्तर दिया-राजन् आपको पुत्र प्राप्त होगा, मगर एक शर्त पर।
राजा-रानी एक साथ बोले-कहिए वह कौन सी शर्त है, हम भी तो सुनें?
यह उत्तर पाकर जोगी बोला-शर्त कठिन है। संभवत: आप स्वीकार न करें। वह यह है कि यदि मेरी कोशिश से आपके पुत्र जन्मेगा तो वह केवल ग्यारह वर्ष तक आपका होगा, और उसके बाद आपको उसे मुझे सौंपना होगा। कहिए, क्या आपको यह शर्त स्वीकार है?
राजा और रानी कुछ समय तक एक-दूसरे का मुंह ताकते रहे और फिर बाद में बोले-जोगी महाराज! हमें पुत्र चाहिए, चाहे वह ग्यारह वर्षों तक ही हमारे पास रहे। हमें आपकी शर्त मंजूर है।
सुन कर जोगी ने उत्तर दिया-अच्छा, तो आज से नौ मास के बाद आपके यहां पुत्र होगा। कह कर वह उन्हें आशीर्वाद देकर चला गया।

रानी ने सचमुच ही यथा समय एक सुन्दर बालक को जन्म दिया। उसका नाम अकनंदुन रखा गया। अकनंदुन बड़ा होकर पाठशाला में पढ़ने लगा तो वहां वह अपनी कक्षा के छात्रों में सबसे बुद्धिमान गिना जाने लगा। दिन बीतते गए और उसका ग्यारहवां जन्म दिन आया। उस दिन वही जोगी न मालूम कहां से फिर आ पहुंचा और राजा-रानी से बोला-अब आप अपनी शर्त पूरी कीजिए और अकनंदुन को मेरे हवाले कीजिए।
भारी मन से राजा-रानी ने अकनंदुन को पाठशाला से बुलवाया और जोगी से कहा-जोगी महाराज, यह है आपकी अमानत।
उसे देखते ही जोगी गंभीर होकर बोला- तो फिर देर क्या है? मैं भूखा हूं, इसका वध करके, इसके मांस को पकाइए और मुझे खिलाइए। जल्दी कीजिए मुझे भूख सता रही है।
राजा-रानी ने रो-रो कर जोगी को इस घृणित और क्रूर कार्य से रोकने का प्रयत्न किया, पर वह एक न माना और क्रोधित होकर बोला-इसके सिवा मुझे और कुछ स्वीकार नहीं। हां एक और बात, इसका वध तुम दोनों के हाथों ही होना भी जरूरी है।
खैर रोते-धोते और मन में इस दुष्ट जोगी को बुरा-भला कहते हुए उन्होंने अकनंदुन को मार डाला। उसका मांस रसोईघर में जब पक कर तैयार हुआ तो जोगी बोला-अब देर क्या है? इसे चार थालियों में परोसो। एक मेरे लिए, दो तुम दोनों के लिए और चौथी स्वयं अकनंदुन के लिए।
अकनंदुन की थाली का नाम सुनकर वहां उपस्थित लोग क्रोध से लाल-पीले और हैरान हो उठे। पर जोगी की आज्ञा का पालन करके चार थाल परोसे गए। सभी अपने-अपने आसन पर बैठे। राजा-रानी के नेत्रों से निरंतर अश्रुधारा बह रही थी। इतने में ही जोगी बोला-रानी रत्ना! उठो और खिड़की में से वैसे ही अपने पुत्र को बुलाओ जैसे रोज बुलाती हो। जल्दी करो खाना ठण्डा हो रहा है।
रानी रत्नमाला भारी हृदय से उठकर खिड़की की ओर गई और रोते-विलाप करते हुए उसने अकनंदुन का नाम पुकारा। उसके पुकारने की देर थी कि सीढ़ियों पर से दिन प्रतिदिन की तरह ‘आया माताजी’ कहता हुआ अकनंदुन वहां पहुंच गया। रत्नमासला और राजा से लपक कर गले लगा। पर यह क्या? जब उन्होंने थालियों और जोगी की ओर देखा तो वहां न तो जोगी ही था और न वे परोसे गए थाल ही। जोगी की हर जगह तलाश की गई पर वह कहीं न मिला। वह कहां से आया था और कहां गया, इसका भी किसी को पता न चला।
राजा-रानी अकनंदुन को पुन: पाकर अत्यंत हर्षित हुए।

(इस लोककथा को रमजान भट नामकएक कवि ने गाथा-गीत के रूप में कविताबद्ध किया है। यह गाथा-गीत कश्मीरियों का एक लोकप्रिय गीत है।)

****
साभारः लोककथाओं से साभार।

   1
1 Comments

Farhat

25-Nov-2021 03:10 AM

Good

Reply